बरेली कॉलेज के बाद एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय में भी घोटालों की परतें खुलने लगी हैं. बरेली कॉलेज पर जहां जिला प्रशासन शिकंजा कस रहा है वहीं विश्वविद्यालय में घोटाले की शासन ने जांच शुरू कराई है.
विधानसभा में मामला उठने के बाद लोक लेखा समिति (पीएसी) विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड खंगालेगी. 2013-14 में 23 बिंदुओं पर आपत्ति लगी थी जिसका निस्तारण नहीं हुआ. अब पीएसी इसकी परतें खोलेगी, इसके लिए लखनऊ में 23 अक्तूबर को बैठक होगी. सूत्रों की मानें तो ऑडिट में ही तमाम गड़बड़ियां सामने आई थीं.
खासतौर से परीक्षाओं के लिए कॉलेजों को लाखों रुपये देने और कर्मचारियों को मिलने वाले भत्ते और मानदेय देने में गड़बड़ी सामने आई है. विश्वविद्यालय में 2013-14 में कई गड़बड़ियों की शिकायतें विधानसभा में हुईं थीं. परीक्षाओं में व्यवस्थाओं को लेकर कॉलेजों को लाखों रुपया विश्वविद्यालय की तरफ से दिया जाता है.
इसमें काफी पैसा बच जाता है जो विश्वविद्यालय में सरेंडर होता है. बचा हुआ पैसा विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में नहीं चढ़ा है. कर्मचारियों को लाखों रुपये के भत्ते और मानदेय दिया जाता है. इसके रिकॉर्ड में भी गड़बड़ी थी. इसके अलावा एडमिशन फीस, संबद्धता फीस, परीक्षा फीस, मार्कशीट की स्टेशनरी, कैंपस के विभागों की फीस, किताबों और अन्य सामान की खरीद पर भी सवाल इठाए गए हैं.
विश्वविद्यालय प्रशासन दो दिन से सारे रिकॉर्ड और ऑडिट रिपोर्ट खंगाल रहा है ताकि आपत्तियों का जवाब दिया जा सके. अब 23 अक्तूबर को पीएसी की बैठक होगी, जिसमें सभी 23 बिंदुओं को रखा जाएगा.
फाइलों में दम तोड़ जाते हैं मामले
विश्वविद्यालय में घोटालो के मामले जब-तब सामने आते रहते हैं, लेकिन फाइलों में ही दम तोड़ जाते हैं. मार्कशीट की स्टेशनरी कई वर्षों से एक ही फर्म से खरीदा जाता है. उसका दोबारा टेंडर नहीं निकाला गया. कई करोड़ के कार्य बिना टेंडर के ही करा दिए गए. 40 लाख रुपये से कर्मचारियों के क्वार्टर की मरम्मत होनी थी.
कार्यदायी संस्था बिना कार्य किए ही पूरा भुगतान लेकर चली गई. पिछले दिनों 45 लाख की लाइटें लगाई गईं. उनका टेंडर नहीं हुआ. अफसरों ने अपने आराम के लिए कई लाख की गाड़ियां खरीदीं जबकि पहले से वाहन थे. परीक्षा भवन के लिए एक करोड़ का फर्नीचर खरीदा गया जो धूल फांक रहा है.
सूत्रों की मानें तो कई करोड़ के उपकरण लैबों के लिए खरीदे गए जिनके पैकेट आज तक नहीं खुले हैं. यह खरीद सिर्फ कमीशन के लिए की गई. विभागीय लाइब्रेरी के लिए दो करोड़ की किताबें खरीदी गईं, जबकि विभागों में लाइब्रेरी ही नहीं बन सकी.
सुरक्षा एजेंसी और बिजली पर करोड़ों रुपये खर्च होता है और सबसे ज्यादा कमीशन इसी में मारा जाता है. तमाम घोटाले सामने आने के बावजूद सब फाइलों में दबकर खत्म हो जाते हैं. मूल्यांकन में कर्मचारियों की ड्यूटी से लेकर परीक्षकों के नाश्ते में लाखों के वारे न्यारे होते हैं. 2013-14 के 23 बिंदुओं पर आपत्ति लगी है.
लोक लेखा समिति इसका परीक्षण कर रही है. 23 अक्तूबर को लखनऊ में बैठक है. जरूरत दस्तावेज कमेटी का उपलब्ध करा दिए हैं.
– सुरेश उपाध्याय,वित्त अधिकारी रुहेलखंड विश्व विद्यालय