गंगा को निर्मल, पावन करने की मुहिम में जुटी सरकार को उसी के विभाग ठेंगा दिखाने में जुटे हैं. नगर निगम व उद्योगों ने बरेली की पावन नदियों का गला घोंट दिया है. नगर निगम रोजाना 315 मिलियन लीटर गंदा पानी और सीवर ट्रीटमेंट किए बगैर नकटिया और किला नदी में मिला रहा है. वहीं शहर के उद्योगों से रोजाना 14 मिलियन लीटर पानी रामगंगा और सहायक नदियों में जा रहा है.
नगर निगम है सबसे बड़ा गुनाहगार
रामगंगा और गंगा का सबसे बड़ा गुनाहगार नगर निगम है. कैंट बोर्ड भी इसी कड़ी में शामिल है. नगर निगम से रोजाना 315 मिलियन लीटर गंदा पानी और सीवर बिना ट्रीटमेंट के रामगंगा में मिलाया जाता है जबकि उद्योगों का करीब 14 मिलियन लीटर पानी रोजाना नदियों का दम घोटता है. बरसों गुजर जाने के बाद भी नगर निगम ने शहर में न तो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया है और न ही ड्रेनेज ट्रीटमेंट.
बीडीए की मिलीभगत से बिल्डर भी कर रहे गड़बड़ी
शासन ने नई कालोनियों में वाटर और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाना अनिवार्य कर दिया था. मगर बीडीए से मिलीभगत के चलते बरेली के बिल्डर अपनी कालोनियों का पानी और सीवर ट्रीट किए बगैर रामगंगा में मिला रहे हैं.
जलीय जंतुओं के साथ ही मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर
आर्सेनिक, मरकरी आदि हैवी मेटल की श्रेणी में आते हैं. जो खाने के माध्यम से अगर पेट में पहुंच जाएं तो पचते नहीं बल्कि मसल्स में रह जाते हैं. ऐसे में जिन नदियों के पानी में हैवी मेटल होते हैं उनमें रहने वाली मछलियां और अन्य जलीय जीवों के शरीर में भी ये पहुंच जाते हैं. बाद में जब इन मछलियों को मानव खाते हैं तो ये मेटल उनके साथ ही मानवों के पेट में पहुंच जाते हैं. धीरे-धीरे ये मेटल कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी पैदा कर देते हैं.
नदियों से सींचे जाने पर सब्जियों के जरिए आप तक पहुंच रहे हैवी मेटल
रामगंगा, नकटिया और किला आदि नदियों पर काफी संख्या में किसान भी निर्भर हैं. जिले के बड़े भूभाग में इससे सिंचाई भी होती है. ऐसे में इन नदियों से हैवी मेटल फसलों तक पहुंचती हैं खासकर सब्जियों में. इन सब्जियों को खाने से ये मेटल हमारे-आपके लिए भी खतरनाक हैं.